चीन के पहले सम्राट चिन शी हुआंग की सेना की मिटटी की मूर्तियों का संग्रह, आज यूनेस्को की एक विश्व सांस्कृतिक धरोहर है ।
पर ये टेराकोटा सेना, जिसकी कोई भी दो आकृतियाँ एक जैसी नहीं हैं, बनवाई कब और क्यों गयी थी?
टेराकोटा सेना, चीन के पहले सम्राट चिन शी हुआंग की सेना की, मिटटी की मूर्तियों का एक संग्रह है ।
"जब वह सिर्फ 13 साल की उम्र का था, तो अकबर की तरह, वह भी राजा बना ।
जैसे अकबर ने अपने अधीन भारत को किया, वैसे ही चिन भी चीन को जीतने और उसे अपने अधीन एकजुट करने में जुट गया ।
Qin (किन) को चिन पढ़ा जाता है ।
इसलिए कुछ विद्वानों ने राय बनाई कि शब्द ‘चीन’ और इसके प्राचीन अपभ्रंश हो न हो, 'चिन' राज्य के नाम पर रखे गए, जो झोउ राजवंश के दौरान सबसे पश्चिमी चीनी राज्य था ।
इसी राजवंश के चिन शिहुआंग ने चीन को एकीकृत कर, 'चिन' राजवंश की स्थापना की|”
अब मन में प्रश्न उठता है.....
''तो क्या चीन का नाम इस तरह पड़ा
? सम्राट चिन शिहुआंग के नाम पर ?”
"ये मैं नहीं कह सकता,
"लेकिन आमतौर पर चीनी चीन को अपनी लिपि में जिस तरह लिखते हैं (中国), चीनी में उसका उच्चारण ‘ज्होंग गुओ’ बनता है, जिसका चीनी में मतलब होता है, 'केंद्रीय राष्ट्र'।
ज़ाहिर है, ये कल्पना करने वाले कि वे पृथ्वी के केंद्र में रहते हैं, प्राचीन चीनी अकेले लोग नहीं थे।"
"चीन एक प्राचीन सभ्यता है।
इतनी पुरानी, कि यूनेस्को के 48 विश्व धरोहर स्थल यहाँ होने के कारण यह फिलहाल इस गुणवत्ता पर दुनिया में दूसरे नंबर पर है ।
इनमें से, 34 सांस्कृतिक धरोहर स्थल हैं, 10 प्राकृतिक धरोहर स्थल हैं, और चार सांस्कृतिक और प्राकृतिक (मिश्रित) स्थल हैं ।
"1985 में विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से जुड़ने के बाद, चीन ने बड़े पैमाने पर अपने कई सांस्कृतिक धरोहर स्थलों का ऐसा जीर्णोद्धार किया, कि आज वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संरक्षित स्थलों में से एक हो गए हैं ।
"इनमें से कई तो चीन की वर्तमान राजधानी बीजिंग में हैं – जैसे स्वर्ग का मंदिर, चीन की महान दीवार, निषिद्ध शहर, मिंग की कब्र, ग्रीष्म महल, महान नहर और झुकौदियन (Zhoukoudian) का 'पेकिंग आदमी' ।
बीजिंग सहर को पहले पेकिंग कहते थे.....
"दिलचस्प बात ये है कि मिटटी में दफन इस विशाल सेना की कोई भी दो आकृतियाँ एक जैसी नहीं हैं,”
''आकृतियाँ अपने ओहदों के हिसाब से कुछ छोटी- बड़ी बनाई गयी हैं, जैसे जनरलों की ऊँचाई सेना में सबसे ज्यादा है ।
सभी मिटटी के योद्धा जो मिले हैं, वे आदम-कद हैं ।
अपनी भूमिकाओं के अनुसार ऊंचाई में भिन्नता के अलावा, सेना में रैंक के अनुरूप भी वर्दी और बालों के स्टाइल में भिन्नताएँ हैं ।
आज हम ये भी जानते हैं कि अलग-अलग तरह के योद्धाओं की चीज़ें मूलतः चमकीले गुलाबी, लाल, हरे, नीले, काले, भूरे, सफेद और बकाइन पिगमेंट से भी रंगी गयीं थीं ।
''कई आकृतियों के पास तो मूलतः हथियार भी असली ही थे जैसे तेज भाले, तलवारें, या धनुष ।
इनमें से कुछ हथियारों, जैसे तलवारों पर 10-15 माइक्रो-मीटर मोटी क्रोमियम डाइऑक्साइड की परतें पुती थीं, जिन्होंने इन तलवारों को 2,000 वर्षों तक ज़ंग से मुक्त रखा ।
"तीसरी सदी ईसा पूर्व के ये 8,000 सैनिक, 520 घोड़ों वाले 130 रथ, और 150 अश्वारोही सेना के घोड़े (अनुमानित आंकड़े), जिनमें से अधिकतर चिन शि हुआंग के मकबरे के पास तीन गड्ढ़ों में दफन रहे, शायद इन्हें यहाँ दफनाया गया था चिन की मृत्योपरांत उसके साम्राज्य की सुरक्षा करने में उसकी मदद के लिए ।
रंगी लाह से सज्जित, असली हथियारों और अद्वितीय चेहरों वाली ये आदम-कद मूर्तियाँ जब बनाकर यहाँ दफ़न की गयी होंगी, तो एक यथार्थ सेना का आभास कराती रही होंगीं ।
सोचो ज़रा, बुद्ध के 200 साल बाद के या ईसा से 250 साल पहले के किसी आदमी की कोई फोटो नहीं है ।
कहते है... चिन शिहुआंग के कारीगरों ने सिपाहियों की शक्लें हू-ब-हू बनाईं ।
किसी आदमी की शक्ल दूसरे जैसी नहीं बनाई, हालाँकि इनमें से कई आकृतियों के धड़ एक जैसे हैं ।
इनके हाथों में हथियार भी असली दिए गए ।
सैनिकों के अलावा टेराकोटा की अन्य गैर-सैन्य आकृतियाँ भी दूसरी कब्रों में यहाँ मिलीं हैं
– जैसे अधिकारी-गण, कलाबाज़, पहलवान, और संगीतकार आदि, लेकिन कौन जानता है कि अभी भी अनदेखा और क्या-क्या यहाँ दफन है ।
इस समय मिटटी की जितनी मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं, वे सब अपने अंशों से बहाल की गयीं हैं ।
अधिकाँश मकबरा तो आज तक भी खोला नहीं गया है, शायद कलाकृतियों के संरक्षण के बारे में इन्ही चिंताओं के कारण ।
उदाहरण के लिए, टेराकोटा आर्मी की खुदाई करने के बाद, कुछ टेराकोटा आकृतियों की रंगी सतह पपड़ियाँ बन कर उतरने लगी और फीकी पड़ने लगी......
'रंग पर चढ़ी लाख एक बार शीआन की सूखी हवा के संपर्क में आ जाए, तो पन्द्रह सेकंड में आकृति पर लगा पेंट पपड़ी बन जाता है, और सिर्फ चार मिनट में परत बन कर उतर जाता है| शायद इसीलिए अब तक, केवल चार मुख्य कब्रों की लगभग 7 मीटर गहरी खुदाई की गई है.......
"230 मीटर x 62 मीटर चौड़ी कब्र एक, जो खोजी गयी सभी कब्रों में सबसे बड़ी है, 6,000 से अधिक आकृतियों की मुख्य सेना अपने अन्दर समाये थी ।
इसमें 11 गलियारे थे जिसके दोनों ओर छोटी छोटी इंटें लगीं हुईं थीं ।
इनमें से अधिकतर 3 मीटर से अधिक चौड़े थे और इनकी लकड़ी की छत बड़ी बड़ी शहतीरों और खम्बों पर टिकी थी ।
यही डिज़ाइन रईसों की कब्रों के लिए भी इस्तेमाल किया गया था और जब बनाया गया होगा, तो महल के दालानों जैसा लगता रहा होगा ।
लकड़ी की छतें सरकंडों की चटाइयों से ढकी थीं, जिन्हें जल-रोधन के लिए चिकनी मिटटी की परतों से ढका गया था, और उसके बाद उन्हें और ऊँचा उठाने के लिए और अधिक मिट्टी से तब तक पाटा गया था, जब तक कि वह आस-पास की धरती से 2-3 मीटर ऊँची नहीं हो गयी ।
इस मकबरे के निर्माण के बारे में इतिहासकार सिमा चियान ने लिखा है.....
उसके सबसे उल्लेखनीय काम, शीजी, जो कि इस समाधि के पूरा होने के एक शताब्दी बाद लिखी गयी थी, में सिमा का कहना है कि इस समाधि पर काम 246 ईसा पूर्व में शुरू हुआ, जब सम्राट चिन अभी सिंहासन पर चढ़ा ही था, और इस परियोजना का अंत होते तक इससे 700,000 श्रमिक जुड़ चुके थे......
"ये दफन सेना आखिरकार मिली कैसे?"
"वर्षों तक, कथित तौर पर इस इलाके से मिट्टी की आकृतियों के टुकड़े, छतों की टाइल्स के अंश, ईंटों और चिनाई के टुकड़े मिलते रहे थे, लेकिन पुरातत्वविदों ने इन पर अधिक ध्यान नहीं दिया था|
"फिर मार्च 1974 में, शानक्सी प्रांत में शीआन के पूर्व में, किसानों को माउंट ली (लिशान) पर स्थित चिन सम्राट की कब्र के टीले के लगभग दो किलोमीटर पूर्व, भूमिगत झरनों और जल-स्रोतों से भरे इस क्षेत्र में, पानी के एक कुँए के लिए खुदाई करते हुए, इस गड़े खज़ाने का एक अंश मिल गया......
"अब चीनी पुरातत्वविद जांच के लिए आए, और चीन में मिट्टी की मूर्तियों का अब तक का सबसे बड़ा समूह उजाले में आया । 1980 में, उन्हें दो-टुकड़ों वाला चिन का कांस्य-रथ भी मिला ।
"पहले टुकड़े में कांसे की छतरी वाला एक रथ, जिसमें दो सीटों के साथ एक चालक भी था ।
दूसरे टुकड़े में एक अलग गाड़ी थी। दोनों टुकड़े किसी असली घोड़े के आकार के लगभग आधे बड़े थे
"यह रथ जब मिला था, तो यह टूटा हुआ था ।
पांच साल लगे, दोनों रथों को बहाल करने में । दिलचस्प ये भी है कि यह कांस्य रथ अब ऐसी 64 नामित ऐतिहासिक कलाकृतियों में से एक है, जिन्हें चीन से कभी भी बाहर निकाल कर लाने की मनाही है ।