मज़दूर वर्ग व उसके नेताओं को बदनाम करने के लिए पूँजीपतियों के भाड़े के टट्टू तमाम झूठे किस्से-कहानियां गढ़ते हैं। आजकल स्तालिन के बारे में भी एक ऐसा ही किस्सा वायरल किया जा रहा है। इससे अलग एक किस्सा स्तालिन के बारे में ये भी है।
भारत आजाद होने के कुछ ही समय बाद घोर अन्न संकट की गिरफ्त में आ गया था। उसने अमेरिका और रूस दोनों से जल्दी से जल्दी अनाज भेजने का अनुरोध किया। वाशिंगटन के सौदागर-सूदखोर अनाज की कीमत और उसकी अदायगी की शर्तों पर सौदेबाजी करते रहे। उधर जब यही अनुरोध क्रेमलिन के पास पहुँचा, तो स्तालिन ने अन्यत्र भेजे जा रहे अनाज के जहाज भारत की ओर मोड़ने का निर्देश दिया। इस पर क्रेमलिन के एक उच्चाधिकारी ने स्तालिन से कहा : “अभी इस मसले पर समझौता और दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होने हैं।”
इस पर स्तालिन ने कहा : “दस्तावेज-समझौते इन्तजार कर सकते हैं, भूख इंतजार नहीं करती।”
(गत शताब्दी में 50 के दशक के एक उच्चपदस्थ भारतीय राजनयिक पी. रत्नम ने उक्त वार्ता की चर्चा मास्को में अपने दूतावास में एकत्र भारतीयों के समक्ष की।)
दिसम्बर 2005 के बिगुल अख़बार में पेज 9 पर प्रकाशित
अंक की पीडीएफ फाइल का लिंक - http://www.mazdoorbigul.net/pdf/Bigul-2005-12.pdf
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