गुरुवार, 22 दिसंबर 2016

कोलौसियस एक खौफनाक अखाडा

अखाड़े में सुबह का वक्‍त शिकार का होता था ।
हर तरह के खूँखार, जंगली जानवर अखाड़े में छोड़ दिए जाते थे। दर्शकों को खास तौर से बैल और भालू की लड़ाई में बहुत मज़ा आता था ।

अकसर इन दोनों जानवरों को एक-साथ बाँध दिया जाता था ताकि वे तब तक लड़ते रहें जब तक कि दोनों में से एक मर ना जाए । उसके बाद जो जानवर ज़िंदा बच जाता उसे एक शिकारी मार डालता था ।
दर्शकों को शेर और बाघ, या हाथी और भालू के बीच के मुकाबलों को भी बहुत पसंद करते थे ।

साम्राज्य के कोने-कोने से चीते, गेंडे, दरियाई घोड़े, जिराफ, लकड़-बग्घे, ऊँट, भेड़िए, जंगली सुअर और बारहसिंगे जैसे कई किस्म के जानवरों को हर दाम पर खरीदकर लाया जाता था ।

फिर शिकारी इन अनोखे जानवरों को मारने में अपना जौहर दिखाते थे । खूबसूरत नज़ारे, मुकाबले को यादगार बनाते थे ।
अखाड़े में चट्टान, तालाब, और पेड़ लगाए जाते थे, जिससे कि देखने में नज़ारा बिलकुल जंगल जैसा लगे। कुछ अखाड़ों में, जानवर ज़मीन के अंदर से लिफ्टों और ज़मीन में छिपे हुए दरवाज़ों से अचानक मानो किसी जादुई करामात से सामने आ जाते थे ।

दूसरी बात जो ऐसे खेलों में जान डालती थी वह थी जानवरों की अजीबो-गरीब हरकत, वे अचानक कुछ भी कर बैठते थे ।
मगर इन सबसे ज़्यादा, शिकार में होनेवाली क्रूरता से लोग रोमांचित होते थे ।
अगला कार्यक्रम लोगों को जान से मार डालने का होता था ।

पौराणिक कथाओं पर नाटक खेले जाते थे और इनमें पूरी कोशिश की जाती थी कि ये नाटक न लगे ।

जिन कलाकारों को उनमें मरने का अभिनय करना पड़ता था, वे सचमुच मर जाते थे ।
दोपहर के समय अलग-अलग वर्ग के ग्लैडियेटर जिन्होंने अलग-अलग तरीके से लड़ने की ट्रेनिंग हासिल की हो और जो अपने-अपने तरीके से हथियारों से लैस हों, एक-दूसरे के साथ लड़ते थे ।

लाशों को घसीटकर ले जानेवाले कुछ लोग पाताल के देवता जैसी पोशाक पहने होते थे ।

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