गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014
तुंगास्का मेँ हुआ था सबसे रहस्यमय धमाका ....
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2014
संत कुंभनदास और राजा रामसिँह
एकवार राजा मानसिँह नेँ प्रकृति कवि कुंभनदास जी के दर्शन के लिये अपना भेष बदला और कवि के घर पहंचे । उन्होने देखा कवि अपने पूत्री से कह रहे थे कि जाकर दर्पण ले आये उन्हे माथे पर टिका करना हे । कवि कुंभनदास कि पूत्री दर्पण लेकर आ रही थी पर आते वक्त उसके हात से दर्पण नीचे गिरा और टुट गया ।
कुंभनदास जी नेँ शांतभाव से कहा कोई वात नहीँ तुम एक वर्तन मेँ पानी भर कर लाओ मेँ टिका कर लुगां । राजा को कवि के निर्धनता पर दुःख हुआ । अगले दिन राजा मानसिँह अपने असली रुप मेँ कवि के घर पधारे और कवि को रत्न युक्त दर्पण रखलेने के लिये अनुरोध किया ।
कवि कुंमनदास जी नेँ राजा का स्वागत किया और बड़े नम्रभाव से राजा मानसिँह से कहने लगे राजन ! आप मुझे दर्शन देने के लिये स्वयं चलकर आये यही मेरे लिये वहुत हे परंतु आपसे एक आग्रह हे कृपया आप जब भी अयेँ खाली हाथ आये मुझे माता सरस्वती के कृपा सिवाय और कुछ नही चाहिये ..। राजा मानसिँह आश्चर्य चकित रहगये ,
उन्होने देखा कवि कुँभनदास जी अपने निर्धनता से दुःखी नही हे अपितु वो तो अपने जीवन से पूर्ण संतुष्ट है । कवि कि निःस्पृहमनोवृत्ति देखकर राजा मानसिँह के ह्रृदय मेँ उनके प्रति आदारभाव और बढ़गया ।
गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014
सुएज केनाल 19वीँ सदी का महानतम निर्माण
इजिप्त के भूमी पर इंसान द्वारा बनाया गया सुएज नहेर भुमध्य सागर और आरव सागर को एक दुसरे से जोडता हे । दश वर्ष तक चला ये वांधकाम 1869 17 नवेम्वर को पुरा हुआ था । वैश्विक व्यापार को व्यापक बनाने के लिये सुएज केनाल मील का पथ्थर साबित हुआ । 1869 से पहले एसिआ से युरोप आनेजाने के लिये पुरा आफ्रिका महादेश का चक्कर लगाना पड़ता था जिससे समय और इंधन कि खप्पत ज्यादा होता था । सुएज केनाल के बनजाने से सफर 40% कम हुआ जिससे व्यापार मेँ वृद्धि हुई । सुएज केनाल बनाने का विचार तो नेपोलियन को भी आया था परंतु इसका अमल होते होते 1854 का समय आ गया । फ्रेँच शासकोँ नेँ केनाल बनाने मेँ रस लिया इजिप्त को केनाल के लिये मनाया एवं वांधकार्य शुरु किया । उत्तर मेँ पोर्ट सईद से दक्षिण मेँ पोर्ट त्वाकिफ तक 164 किलोमिटर लम्बा केनाल बनाने के लिये सुएज केनाल कंपनी कि स्थापना हुआ था एवं अप्रिल 1859 मेँ केनाल कि खुदाई शुरु हुई थी । यह बात 150 साल पुरानी हे उस समय केनाल के बनने मेँ काफी विघ्न आया था । एक अड़चन था कलेरा या हैजा महामारी कि । यह विस्तार काफि पिछड़ा हुआ था जिससे कारिगरोँ के स्वास्थ पर इसका सिधा असर होता था । दुसरा विघ्न था मिट्टी उत्तखनन की । तिसरा विघ्न था मजदुर और मालिकोँ के बीच बादविवाद । ये सब होते होते केनाल चार वर्ष विलंब से 1869 मेँ पुरी हुई । 30 हजार मजदुर और 10 करोड़ डॉलार के खर्चे पर केनाल का कार्य पुरा हुआ था । शुरवात के 99 साल केनाल कंपनी के हात मेँ था । बाद मेँ इसे इज्जिप्त सरकार के सुपुर्त किया गया । उस वक्त फ्रान्स और व्रिटेन नेँ केनाल पर कब्जा करने कि कोशिश कि थी । इजरायल ने 1967 मेँ सिक्स् डे वॉर शुरु करदिया जिससे इजिप्त को यह केनाल बंद करना पड़ा था । आज विश्वभर मेँ जलरहे कुल विदेश व्यापर का आठ टका जहाज सुएज केनाल का लाभ लेती हे । विश्व इंजिनियरिँग मेँ सुएज केनाल का नाम सदा गौरवमय रहेगा ।
ऐसे जवाब सिर्फ माईक्रोसोफ्ट कंपनी वालेँ हीँ दे सकते है !
रोवर्ड पियरी इतिहास से आगे
पृथ्वी कि उत्तर ध्रुव या दक्षिण ध्रुव मेँ पहंचना आजकल आसान हो गया हे परंतु आज से 100 150 साल पहले यह इतना आसान न था । 20वीँ सदी के शुरुवात मेँ साहसी व्यक्तिओँ नेँ उत्तरध्रुव तक पहंचने के लिये एक रेस चलाया था । 6 एप्रिल 1909 मेँ अमरिकन कमांड़र रोवर्ट पियरी नेँ इस रेस मेँ विजेता साबित थे । बर्फिला उत्तर ध्रुव का वातावरण असल मेँ कैसा है ? वहाँ कैसी विषमताऐँ और का दिक्कतेँ हे ? जीवजगत कैसा हे ? आदि सारे विश्व के लिये अनजाना थी । पियरी नेँ सफलता से पहले 23 सालोँ मेँ आठ प्रयाश किया था और अंत मेँ उन्हे जीत नशीव हुई । उत्तर ध्रुव तक पहचंने के चक्कर मेँ तबतक 300 से ज्यादा साहासी व्यक्तिओँ नेँ अपनी जान गवाँ चुके थे । पियरी से पहले अन्य एक अमेरिकन साहसी डॉक्टर फ्रेडरिक कुक नेँ उत्तर ध्रुव के लिये निकले थे और एक आद सालवाद उनके लाश मिला था । इस आधार पर कुछ लोग दावा करते हे कि शायद कुक हि प्रथम सफल व्यक्ति थे और लौटते वक्त उनकी मौत हो गयी थी । हालाकि यह मत मान्य नहीँ हे यह वात अलग है । रोवर्ट पियरी नेँ 1908 6 जुलाई मेँ अपने 23 साथीदारोँ के साथ उत्तरध्रुव कि और कुच किया था और 1909 मार्च तक वो उत्तर ध्रुव मेँ पहचंगये थे केंद्र तक पहचंते पहचंते पियरी के सिर्फ 6 साथीदार हि वचपाये थे । विकट परिस्तीतिओँ मेँ कईओँ को अपनी जान गवानी पड़ी । 6 एप्रिल 1909 मेँ आखरीकार रोवर्ट पियरी नर्थ पोल पर पहचंगये और उन्होनेँ अमरिकी झंडा गाड दिया । अमेरिका लौटने पर पियरी नेँ कुछसाल नौकादल मेँ कैप्टन और वाद मेँ रियर अडमिरल का औदा सम्भाला । अंत मेँ पियरी नेँ 1920 मेँ दुनिया को अलविदा कहदिआ । हालाँकि आज भी यह विवाद लगा हुआ हे कि उत्तरध्रुव मेँ पहचंनेवाले पहले पहले व्यक्ति कौन थे । 1909 मेँ पियरी कि साहसयात्रा को नेशनल जियोग्राफिक सोसायटी नेँ स्पोन्सर किया था और इसी सोसायटी नेँ ही 1989 मेँ पियरी सच्चे थे या नहीँ जनने के लिये जाँचदल बनाया था और अंत मेँ इस दल नेँ भी पियरी को सच्चा साबित कर दिया था । आज भले पियरी नहीँ हे परंतु इतिहास मेँ उनका नाम हमेशा हमेशा के लिये अमर हो चुका हे...