मंगलवार, 18 जुलाई 2017

Something interesting about London

Did you know London only reached its pre-WW2 population level in 2015? Today central London is so crowded that the traffic moves at the same speed as horse-drawn carriages a century ago. One aspect in which London is yet to catch up to the past is in coffee shops. There were nearly 3,000 coffee shops in London in the 1700's, double the 1,500 in 2012.

Being an old city, London has some interesting traditions. When British warships enter the Thames they are required to present a barrel of rum to the Constable of the Tower (the man in command of the Tower of London) in the 'Ceremony of the Constables Dues'.

Another interesting one is where because of an old superstition, several ravens are kept at the Tower of London at all times. These ravens are enlisted soldiers of the Kingdom, and have occasionally been dismissed for bad conduct. While wild ravens live for 10-15 years, Tower ravens can live past 40 years.

रविवार, 16 जुलाई 2017

Pamukkale

Pamukkale has been made eternally famous by the gleaming white calcite travertines (terraces) overrunning with warm, mineral-rich waters on the mountain above the village – the so-called ‘Cotton Castle' (pamuk means 'cotton' in Turkish). Just above the travertines lies Hierapolis, once a Roman and Byzantine spa city, which has considerable ruins and a museum.

Unesco World Heritage status has brought measures to protect the glistening bluffs, and put paid to the days of freely traipsing around, but the travertines remain one of Turkey’s singular experiences.

While the photogenic travertines get busloads of day-trippers passing through for a quick soak and photo op, staying overnight allows you to visit the site at sunset and dodge some of the crowds. 

This also gives time for a day trip to the beautiful and little-visited ancient ruins of Afrodisias and Laodicea, and to appreciate the village of Pamukkale itself.

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

-------/////टेराकोटा////////---------

चीन के पहले सम्राट चिन शी हुआंग की सेना की मिटटी की मूर्तियों का संग्रह, आज यूनेस्को की एक विश्व सांस्कृतिक धरोहर है ।

पर ये टेराकोटा सेना, जिसकी कोई भी दो आकृतियाँ एक जैसी नहीं हैं, बनवाई कब और क्यों गयी थी?

टेराकोटा सेना, चीन के पहले सम्राट चिन शी हुआंग की सेना की, मिटटी की मूर्तियों का एक संग्रह है ।

"जब वह सिर्फ 13 साल की उम्र का था, तो अकबर की तरह, वह भी राजा बना ।
जैसे अकबर ने अपने अधीन भारत को  किया, वैसे ही चिन भी चीन को जीतने और उसे अपने अधीन एकजुट करने में जुट गया ।

Qin (किन) को चिन पढ़ा जाता है ।
इसलिए कुछ विद्वानों ने राय बनाई कि शब्द ‘चीन’ और इसके प्राचीन अपभ्रंश हो न हो, 'चिन' राज्य के नाम पर रखे गए, जो झोउ राजवंश के दौरान सबसे पश्चिमी चीनी राज्य था ।
इसी राजवंश के चिन शिहुआंग ने चीन को एकीकृत कर, 'चिन' राजवंश की स्थापना की|”

अब मन में प्रश्न उठता है.....
''तो क्या चीन का नाम इस तरह पड़ा
? सम्राट चिन शिहुआंग के नाम पर ?”

"ये मैं नहीं कह सकता,
"लेकिन आमतौर पर चीनी चीन को अपनी लिपि में जिस तरह लिखते हैं (中国), चीनी में उसका उच्चारण ‘ज्होंग गुओ’ बनता है, जिसका चीनी में मतलब होता है, 'केंद्रीय राष्ट्र'।

ज़ाहिर है, ये कल्पना करने वाले कि वे पृथ्वी के केंद्र में रहते हैं, प्राचीन चीनी अकेले लोग नहीं थे।"

"चीन एक प्राचीन सभ्यता है।
इतनी पुरानी, कि यूनेस्को के 48 विश्व धरोहर स्थल यहाँ होने के कारण यह फिलहाल इस गुणवत्ता पर दुनिया में दूसरे नंबर पर है ।
इनमें से, 34 सांस्कृतिक धरोहर स्थल हैं, 10 प्राकृतिक धरोहर स्थल हैं, और चार सांस्कृतिक और प्राकृतिक (मिश्रित) स्थल हैं ।

"1985 में विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक विरासत के संरक्षण सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन से जुड़ने के बाद, चीन ने बड़े पैमाने पर अपने कई सांस्कृतिक धरोहर स्थलों का ऐसा जीर्णोद्धार किया, कि आज वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संरक्षित स्थलों में से एक हो गए हैं ।

"इनमें से कई तो चीन की वर्तमान राजधानी बीजिंग में हैं – जैसे स्वर्ग का मंदिर, चीन की महान दीवार, निषिद्ध शहर, मिंग की कब्र, ग्रीष्म महल, महान नहर और झुकौदियन (Zhoukoudian) का 'पेकिंग आदमी' ।
बीजिंग सहर को पहले पेकिंग कहते थे.....

"दिलचस्प बात ये है कि मिटटी में दफन इस विशाल सेना की कोई भी दो आकृतियाँ एक जैसी नहीं हैं,”

''आकृतियाँ अपने ओहदों के हिसाब से कुछ छोटी- बड़ी बनाई गयी हैं, जैसे जनरलों की ऊँचाई सेना में सबसे ज्यादा है ।
सभी मिटटी के योद्धा जो मिले हैं, वे आदम-कद हैं ।
अपनी भूमिकाओं के अनुसार ऊंचाई में भिन्नता के अलावा, सेना में रैंक के अनुरूप भी वर्दी और बालों के स्टाइल में भिन्नताएँ हैं ।

आज हम ये भी जानते हैं कि अलग-अलग तरह के योद्धाओं की चीज़ें मूलतः चमकीले गुलाबी, लाल, हरे, नीले, काले, भूरे, सफेद और बकाइन पिगमेंट से भी रंगी गयीं थीं ।

''कई आकृतियों के पास तो मूलतः हथियार भी असली ही थे जैसे तेज भाले, तलवारें, या धनुष ।
इनमें से कुछ हथियारों, जैसे तलवारों पर 10-15 माइक्रो-मीटर मोटी क्रोमियम डाइऑक्साइड की परतें पुती थीं, जिन्होंने इन तलवारों को 2,000 वर्षों तक ज़ंग से मुक्त रखा ।

"तीसरी सदी ईसा पूर्व के ये 8,000 सैनिक, 520 घोड़ों वाले 130 रथ, और 150 अश्वारोही सेना के घोड़े (अनुमानित आंकड़े), जिनमें से अधिकतर चिन शि हुआंग के मकबरे के पास तीन गड्ढ़ों में दफन रहे, शायद इन्हें यहाँ दफनाया गया था चिन की मृत्योपरांत उसके साम्राज्य की सुरक्षा करने में उसकी मदद के लिए ।

रंगी लाह से सज्जित, असली हथियारों और अद्वितीय चेहरों वाली ये आदम-कद मूर्तियाँ जब बनाकर यहाँ दफ़न की गयी होंगी, तो एक यथार्थ सेना का आभास कराती रही होंगीं ।
सोचो ज़रा, बुद्ध के 200 साल बाद के या ईसा से 250 साल पहले के किसी आदमी की कोई फोटो नहीं है ।

कहते है... चिन शिहुआंग के कारीगरों ने सिपाहियों की शक्लें हू-ब-हू बनाईं ।

किसी आदमी की शक्ल दूसरे जैसी नहीं बनाई, हालाँकि इनमें से कई आकृतियों के धड़ एक जैसे हैं ।
इनके हाथों में हथियार भी असली दिए गए ।

सैनिकों के अलावा टेराकोटा की अन्य गैर-सैन्य आकृतियाँ भी दूसरी कब्रों में यहाँ मिलीं हैं
– जैसे अधिकारी-गण, कलाबाज़, पहलवान, और संगीतकार आदि, लेकिन कौन जानता है कि अभी भी अनदेखा और क्या-क्या यहाँ दफन है ।

इस समय मिटटी की जितनी मूर्तियाँ प्रदर्शित हैं, वे सब अपने अंशों से बहाल की गयीं हैं ।
अधिकाँश मकबरा तो आज तक भी खोला नहीं गया है, शायद कलाकृतियों के संरक्षण के बारे में इन्ही चिंताओं के कारण ।

उदाहरण के लिए, टेराकोटा आर्मी की खुदाई करने के बाद, कुछ टेराकोटा आकृतियों की रंगी सतह पपड़ियाँ बन कर उतरने लगी और फीकी पड़ने लगी......

'रंग पर चढ़ी लाख एक बार शीआन की सूखी हवा के संपर्क में आ जाए, तो पन्द्रह सेकंड में आकृति पर लगा पेंट पपड़ी बन जाता है, और सिर्फ चार मिनट में परत बन कर उतर जाता है| शायद इसीलिए अब तक, केवल चार मुख्य कब्रों की लगभग 7 मीटर गहरी खुदाई की गई है.......

"230 मीटर x 62 मीटर चौड़ी कब्र एक, जो खोजी गयी सभी कब्रों में सबसे बड़ी है, 6,000 से अधिक आकृतियों की मुख्य सेना अपने अन्दर समाये थी ।
इसमें 11 गलियारे थे जिसके दोनों ओर छोटी छोटी इंटें लगीं हुईं थीं ।
इनमें से अधिकतर 3 मीटर से अधिक चौड़े थे और इनकी लकड़ी की छत बड़ी बड़ी शहतीरों और खम्बों पर टिकी थी ।

यही डिज़ाइन रईसों की कब्रों के लिए भी इस्तेमाल किया गया था और जब बनाया गया होगा, तो महल के दालानों जैसा लगता रहा होगा ।
लकड़ी की छतें सरकंडों की चटाइयों से ढकी थीं, जिन्हें जल-रोधन के लिए चिकनी मिटटी की परतों से ढका गया था, और उसके बाद उन्हें और ऊँचा उठाने के लिए और अधिक मिट्टी से तब तक पाटा गया था, जब तक कि वह आस-पास की धरती से 2-3 मीटर ऊँची नहीं हो गयी ।

इस मकबरे के निर्माण के बारे में इतिहासकार सिमा चियान ने लिखा है.....

उसके सबसे उल्लेखनीय काम, शीजी, जो कि इस समाधि के पूरा होने के एक शताब्दी बाद लिखी गयी थी, में सिमा का कहना है कि इस समाधि पर काम 246 ईसा पूर्व में शुरू हुआ, जब सम्राट चिन अभी सिंहासन पर चढ़ा ही था, और इस परियोजना का अंत होते तक इससे 700,000 श्रमिक जुड़ चुके थे......

"ये दफन सेना आखिरकार मिली कैसे?"

"वर्षों तक, कथित तौर पर इस इलाके से मिट्टी की आकृतियों के टुकड़े, छतों की टाइल्स के अंश, ईंटों और चिनाई के टुकड़े मिलते रहे थे, लेकिन पुरातत्वविदों ने इन पर अधिक ध्यान नहीं दिया था|

"फिर मार्च 1974 में, शानक्सी प्रांत में शीआन के पूर्व में, किसानों को माउंट ली (लिशान) पर स्थित चिन सम्राट की कब्र के टीले के लगभग दो किलोमीटर पूर्व, भूमिगत झरनों और जल-स्रोतों से भरे इस क्षेत्र में, पानी के एक कुँए के लिए खुदाई करते हुए, इस गड़े खज़ाने का एक अंश मिल गया......

"अब चीनी पुरातत्वविद जांच के लिए आए, और चीन में मिट्टी की मूर्तियों का अब तक का सबसे बड़ा समूह उजाले में आया । 1980 में, उन्हें दो-टुकड़ों वाला चिन का कांस्य-रथ भी मिला ।

"पहले टुकड़े में कांसे की छतरी वाला एक रथ, जिसमें दो सीटों के साथ एक चालक भी था ।
दूसरे टुकड़े में एक अलग गाड़ी थी। दोनों टुकड़े किसी असली घोड़े के आकार के लगभग आधे बड़े थे

"यह रथ जब मिला था, तो यह टूटा हुआ था ।
पांच साल लगे, दोनों रथों को बहाल करने में । दिलचस्प ये भी है कि यह कांस्य रथ अब ऐसी 64 नामित ऐतिहासिक कलाकृतियों में से एक है, जिन्हें चीन से कभी भी बाहर निकाल कर लाने की मनाही है ।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

●●●●जमी हुई नदी●●●●

सुमित और रोहित लद्दाख के एक छोटे से गाँव में रहते थे। एक बार दोनों ने फैसला किया कि वे गाँव छोड़कर शहर जायेंगे और वहीँ कुछ काम-धंधा खोजेंगे। अगली सुबह वे अपना-अपना सामान बांधकर निकल पड़े। चलते-चलते उनके रास्ते में एक नदी पड़ी, ठण्ड अधिक होने के कारण नदी का पानी जम चुका था। जमी हुई नदी पे चलना आसान नहीं था, पाँव फिसलने पर गहरी चोट लग सकती थी।

इसलिए दोनों इधर-उधर देखने लगे कि शायद नदी पार करने के लिए कहीं कोई पुल हो! पर बहुत खोजने पर भी उन्हें कोई पुल नज़र नहीं आया।

रोहित बोला,''हमारी तो किस्मत ही खराब है, चलो वापस चलते हैं, अब गर्मियों में शहर के लिए निकलेंगे!

नहीं'', सुमित बोला,''नदी पार करने के बाद शहर थोड़ी दूर पर ही है और हम अभी शहर जायेंगे…”

और ऐसा कह कर वो धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा।

''अरे ये क्या का रहे हो….पागल हो गए हो…तुम गिर जाओगे…''रोहित चिल्लाते हुए बोल ही रहा था कि सुमित पैर फिसलने के कारण गिर पड़ा।

''कहा था ना मत जाओ..'', रोहित झल्लाते हुए बोला।

सुमित ने कोई जवाब नही दिया और उठ कर फिर आगे बढ़ने लगा…एक-दो-तीन-चार….और पांचवे कदम पे वो फिर से गिर पड़ा..

रोहित लगातार उसे मना करता रहा…मत जाओ…आगे मत बढ़ो…गिर जाओगे…चोट लग जायेगी… लेकिन सुमित आगे बढ़ता रहा।

वो शुरू में दो-तीन बार गिरा ज़रूर लेकिन जल्द ही उसने बर्फ पर सावधानी से चलना सीख लिया और देखते-देखते नदी पार कर गया।

दूसरी तरफ पहुँच कर सुमित बोला,''देखा मैंने नदी पर कर ली…और अब तुम्हारी बारी है!”

''नहीं, मैं यहाँ पर सुरक्षित हूँ…”

''लेकिन तुमने तो शहर जाने का निश्चय किया था।”

''मैं ये नहीं कर सकता!”

नहीं कर सकते या करना नहीं चाहते!

सुमित ने मन ही मन सोचा और शहर की तरफ आगे बढ़ गया.. यह 'रोहित' हमारे सबके अन्दर होता है, इसे निकल फैंको बहार..

बुधवार, 8 मार्च 2017

ब्रूकलिन ब्रीज् एक प्रेरणादय कहानी

वर्ष 1883 इंजीनियर John Roebling के जीवन में एक महत्वपूर्ण वर्ष था, इस वर्ष वह न्यूयॉर्क से लांग आईलैंड को जोड़ने के लिए एक शानदार पुल का निर्माण करने के लिए अपने विचार के साथ आया था. इसकी भयावहता का कोई अन्य पुल समय के उस बिंदु पर वहाँ नहीं था. बाद मे विशेषज्ञों ने इसे एक असम्भव उपलब्धि कह कर उनके इस विचार को खारिज कर दिया. पूरी दुनिया उनके विचार के खिलाफ थी और उसे योजना ड्रॉप करने के लिए कहा गया.  Roebling के intuition ने उसे कह रखा था कि उसकी दृष्टि पुल के बारे में सही है. Roebling को उसके विचार के लिए केवल एक आदमी का समर्थन प्राप्त था वो था उसका बेटा वाशिंगटन. वाशिंगटन भी एक इंजिनियर था. उन्होंने एक साथ एक विस्तृत योजना तैयार की और आवश्यक टीम को भर्ती किया. वे अच्छी तरह से इस मकसद के लिए तैयार थे. पुल निर्माण का काम शुरू किया गया परन्तु कार्यस्थल पर हुई एक दुर्घटना मे Roebling की म्रत्यु हो गई. आम तौर पर कोई और होता तो इस कार्य को छोड़ देता, लेकिन वाशिंगटन जानता था कि उसके पिता का सपना पूरा हो सकता है.  पर किस्मत तो देखिये, वाशिंगटन को मस्तिष्क क्षति का सामना करना पड़ा और वह स्थिर हो गया ,वह इस हद तक घायल हो गया था कि न तो चल सकता था और न ही बात कर सकता था,यहाँ तक कि हिल भी नहीं सकता था. जैसा की आमतौर पर होता है; विशेषज्ञों, जिन्होंने पुल का निर्माण नहीं करने की सलाह दी थी उन्होंने दोनों को पागल और मूर्ख करार दिया. वॉशिंगटन अपनी सेवाओं का विस्तार करने की स्थिति में नहीं था पर निर्माण परियोजना को समाप्त करने के बारे में भी नही सोच रहा था. वह अपने उद्देश्य के बारे में स्पष्ट था.  वह बातचीत करने के लिए अपनी पत्नी पर पूरी तरह से निर्भर रहा करता था. उसने बातचीत करने के लिए अपनी एक चलती उंगली का इस्तेमाल किया और अपनी बात समझाने की एक कोड प्रणाली विकसित की . शुरू में हर किसी को वह मूर्ख लगा.  पर वाशिंगटन ने हार नहीं मानी, अगले 13 सालों तक उसकी पत्नी ने उसके निर्देशों की व्याख्या की और इंजीनियरों को समझाया . इंजिनियर उसके निर्देशों पर काम करते गए और आखिरकार Brooklyn Bridge हकीकत में बन कर तैयार हो गया . आज ब्रुकलिन ब्रिज एक शानदार कृति के रूप मे बाधाओं का सामना करने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणादायक ट्रू लाइफ स्टोरी के रूप में खड़ा है.  परिस्थितियों को अपनी शक्ति खत्म करने की अनुमति कभी नहीं देनी चाहिए. इस तरह प्यार, समर्पण, प्रतिबद्धता, विश्वास, दृष्टि और अधिक महत्वपूर्ण बात ''हार कभी नहीं'' के रूप में इस प्रेरणादायक सच्चे जीवन की कहानी से बहुत सी चीजें सीखी जा सकती हैं. सब कुछ संभव है …

बुधवार, 1 मार्च 2017

पिकासो कि मिलियन डोलार पैंटिगं

*संघर्ष और सफलता*

पिकासो (Picasso) स्पेन में जन्मे एक अति प्रसिद्ध चित्रकार थे। उनकी पेंटिंग्स दुनिया भर में करोड़ों और अरबों रुपयों में बिका करती थीं।

एक दिन रास्ते से गुजरते समय एक महिला की नजर पिकासो पर पड़ी और संयोग से उस महिला ने उन्हें पहचान लिया। वह दौड़ी हुई उनके पास आयी और बोली, 'सर, मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ। आपकी पेंटिंग्स मुझे बहुत ज्यादा पसंद हैं। क्या आप मेरे लिए भी एक पेंटिंग बनायेंगे ?'

पिकासो हँसते हुए बोले, 'मैं यहाँ खाली हाथ हूँ। मेरे पास कुछ भी नहीं है। मैं फिर कभी आपके लिए एक पेंटिंग बना दूंगा।'

लेकिन उस महिला ने भी जिद पकड़ ली, 'मुझे अभी एक पेंटिंग बना दीजिये, बाद में पता नहीं मैं आपसे मिल पाऊँगी या नहीं।'

पिकासो ने जेब से एक छोटा सा कागज निकाला और अपने पेन से उसपर कुछ बनाने लगे। करीब 10 सेकेण्ड के अंदर पिकासो ने पेंटिंग बनायीं और कहा, 'यह लो, यह मिलियन डॉलर की पेंटिंग है।'

महिला को बड़ा अजीब लगा कि पिकासो ने बस 10 सेकेण्ड में जल्दी से एक काम चलाऊ पेंटिंग बना दी है और बोल रहे हैं कि मिलियन डॉलर की पेंटिग है। उसने वह पेंटिंग ली और बिना कुछ बोले अपने घर आ गयी।

उसे लगा पिकासो उसको पागल बना रहा है। वह बाजार गयी और उस पेंटिंग की कीमत पता की। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि वह पेंटिंग वास्तव में मिलियन डॉलर की थी।

वह भागी-भागी एक बार फिर पिकासो के पास आयी और बोली, 'सर आपने बिलकुल सही कहा था। यह तो मिलियन डॉलर की ही पेंटिंग है।'

पिकासो ने हँसते हुए कहा, 'मैंने तो आपसे पहले ही कहा था।'

वह महिला बोली, 'सर, आप मुझे अपनी स्टूडेंट बना लीजिये और मुझे भी पेंटिंग बनानी सिखा दीजिये। जैसे आपने 10 सेकेण्ड में मिलियन डॉलर की पेंटिंग बना दी, वैसे ही मैं भी 10 सेकेण्ड में न सही, 10 मिनट में ही अच्छी पेंटिंग बना सकूँ, मुझे ऐसा बना दीजिये।'

पिकासो ने हँसते हुए कहा, 'यह पेंटिंग, जो मैंने 10 सेकेण्ड में बनायी है, इसे सीखने में मुझे 30 साल का समय लगा है। मैंने अपने जीवन के 30 साल सीखने में दिए हैं। तुम भी दो, सीख जाओगी।

वह महिला अवाक् और निःशब्द होकर पिकासो को देखती रह गयी।

दोस्तो, जब हम दूसरों को सफल होता देखते हैं,तो हमें यह सब बड़ा आसान लगता है। हम कहते हैं, 'यार, यह इंसान तो बड़ी जल्दी और बड़ी आसानी से सफल हो गया।' लेकिन मेरे दोस्त, उस एक सफलता के पीछे कितने वर्षों की मेहनत छिपी है, यह कोई नहीं देख पाता !

सफलता तो बड़ी आसानी से मिल जाती है, शर्त यह है कि सफलता की तैयारी में अपना जीवन कुर्बान करना होता है। जो खुद को तपा कर, संघर्ष कर अनुभव हासिल करता है, वह कामयाब हो जाता है लेकिन दूसरों को लगता है कि वह कितनी आसानी से सफल हो गया।

मेरे दोस्त, परीक्षा तो केवल 3 घंटे की होती है,लेकिन उन 3 घण्टों के लिए पूरे साल तैयारी करनी पड़ती है। तो फिर आप रातों-रात सफल होने का सपना कैसे देख सकते हो ? सफलता अनुभव और संघर्ष मांगती है। और, अगर आप देने को तैयार हैं, तो आपको आगे जाने से कोई नहीं रोक सकता ।

Copy.....

Theory of death

After his father's death, the Son decided to leave his mother at old age home and visited her on and off. Once he received a call from old age home….Mom very serious ….. please come to visit. Son went and saw mom very critical, on her death bed. He asked: Mom what can I do for you? Mom replied… “Please install fans in the old age home, there are none…. Also put a fridge because many times I slept without food”.  Son was surprised and asked: mom, while you were here you never complained, now you have few hours left and you are telling me all this, why? Mom replied….."it’s OK dear, I've managed with the heat, hunger & pain, but when your children will send you here, I am afraid you will not be able to manage!"