रविवार, 20 अप्रैल 2014

ये भी भुला दिये जायेगेँ ....

लेपटोप और स्मार्टफोन तथा टेवलेट के वजह से डेस्कटॉप प्रड़ोक्ट्स कि मांग कम हुई हे । आज भी कुछ अफिस और प्राय घरोँ मेँ डेस्कटॉप कंम्प्युटर का ही इस्तेमाल होता है और ये ट्रेन्ड सायद चार पांच साल चलगे । नये कोम्प्युटर के आ जाने से आज भले कोई डेस्कटॉप को प्राधान्य न दे रहा हो परंतु एक वक्त था जब कोम्प्युर मतलब डेस्कटॉप को ही माना जाता था । डेस्कटॉप ही कोम्प्युटर की प्रारभं है पर क्युँ की अब नये टेक्नोलोजी नेँ डेस्कटॉप को लोकप्रियता मेँ पछाड़ दिया हे लगता हे बहुत जल्द इसकी भी टाईपराईटर जैसा हाल होगा । लोगोँ को अब कोम्प्युटर पर जॉबवर्क, पेजमेकींग या डेटाएन्ट्री की वर्क करना हे तो वो लेपटोप का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हे ।
जेनीथ जैसे कंपनीओँ ने डेस्कटॉप के बदले मोबाईल पर इन्टरनेट ओपरेट करते लोगोँ को टार्गेट बनाकर प्रड़ोक्ट बनाने लगे है । डेस्कटॉप बनानेवाली कंपनी मोनीटर,सीपीयु आदि कंपनीओँ ने इसमेँ कुछ बदलाब करके मार्केट मेँ टिके रहने के लिये प्रयास किया था परंतु इन सबके बावजुद अब कहना पड़ेगा की शायद डेस्कटोप का सूरज डुबने वाला हे ।

गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

गरबा के रंग बिन गुजरातीओँ के संग B-)

मोदी जी नेँ हाल ही मेँ India tv मेँ आये एक महिला के प्रश्न पर कहा था कि आप गुजरात मेँ अक्टोबर नभेम्बर मेँ आयेँ और देखियेगा रात के 1.00 बजे भी लड़कियाँ गरबा खेलते मिलेगेँ या अंधेरे सड़कोँ पर अकेली जाते हुए मिलेगेँ । मैनेँ गुजरात के 6 सहरोँ मेँ लगभग 8 साल बिताया और गरबा क्या हे ये मुझे अछी तरह से मालुम हे । आपको एक बात बता दुँ ,,, आप कभी गुजरात मेँ गरबा के समय जायेँ तो देखियेगा जहाँ जहाँ गरबा हो रहा होता है वहाँ सुरक्षा के लिये खास लोग डंडे लेकर मौजुद रहते है और हर नाके पर एक चौकिदार या पहरेदार मिलजायेगा जिसके पास बंदुक आदि रहता हे। वे कोई सरकारी लोग नहीँ उन कन्याओँ के भाई अथवा रिस्तेदार होतेँ है । मतलब अगर आपने गलति से भी गलति किया तो आपकि खैर नहीँ हाँ !:-O B-) ;-) ! गुजरात मेँ गरबा खेलाजाता है और आदिवासी भी इसतरह नाचते गाते और पीते पिलाते हे । आदिवासीओँ मेँ ज्यादातर विवाह इन नाचगानोँ मेँ तय होता हे ठिक उसी तरह गरबा मेँ भी लड़का लड़कि को पसंद करता हे और फिर कुछदिन बाद शादी ! अबतक आप ये पढ़कर गुजरातीओँ से जलने लगे होँगेँ कि यार हमारे यहाँ ऐसा होता तो मेँ भी एक आद लड़किओँ को आराम से पटा लेता :-P :-P :-D! ! ! गरबा मेँ झुमते लड़किओँ को देखने का मज्जा हि कुछ और है और इस अवसर का लुफ्त उठाने के लिये दुसरे राज्योँ से आये हुये मजदुर अकसर वहाँ जाते है जहाँ गरवा हो रहा होता हे , मुझे देखने से कोई परहेज नहीँ पर वो जिस अंदाज मेँ उन लड़किओँ देखते है जैसे कोई भुका सामने खाना देखकर होता हे । दुसरोँ के वहू वेटिओँ को देखकर अपने जिभ से लार टपकनेँ मेँ क्या फायदा बहतर होगा ये लोग भी इनके साथ हाथ से हाथ मिलाकर नाचेँ ;-) :-) ! गरबा मेँ नाचने के लिये गुजरातीओँ को कोई अभ्यास करने कि जरुरत हि नहीँ है क्युँ कि गुजरात मेँ हर किसी के शादी मेँ लोग गरबा करते है । जैसे वीर अपने मा के उदर से ही सिखके आते कि कैसे चक्रव्युह तोडना हे कैसे तलवार और घोड़ा चलना हे ठिक उसी प्रकार हर गुजराती अपने माता के गर्भ मेँ ही गरबा खेलखेल कर आखिर मेँ जन्म लेता हे :-O :-O :-P ! अब क्युँ आप लोगोँ नेँ गरबा के बारे मेँ इतना सब पढ़लिया हे आपको भी गरबा देखने का मन कर रहा होगा तो देर किस बात कि गुजरात आपको स्वागत करने के लिये चमकता हुआ तैयार है । :-P :-P B-)

रविवार, 6 अप्रैल 2014

सबसे बहतर था हेल्वेटीका फोन्ट (Helvetica font)

जो लोग इंटरनेट और कोम्प्युटर टेकनोलोजी के साथ जुडे है वो सभी हेल्वेटीका फ्रोन्ट का उपयोग कर चुके है और इसके वारे मेँ थोड़ा वहुत जानते होगेँ। लुफतान्सा,माइक्रोसोफट,टोयोटो,जीप, और 3 एम् मेँ एक सामान्य वात यह हे कि इन सभी कंपानीओँ ने हेल्वेटीका फोन्ट का उपयोग किया । फोन्ट एक प्रकार कि पहचान हे, जैसे माइक्रोसोफ्ट् - विन्डोज कि एरीयल फोन्ट हे , इसी तरह टाइम्स अखबार नेँ स्वयं कि टाइम्स रोमन फोन्ट डेवलोप किया था । सेरीफ फोन्ट, कोपरप्लेट, गोपीक और फोक्स रोमन फोन्ट आदि पश्चिम के देशोँ मेँ तैयार किया गया था परंतु जब हेल्वेटिका आया सब बदल गया क्युँ कि इसमेँ पूरव के आईडिया भी लगे हुए थे और ये दुसरे फोन्ट से वहतर था । यह हेल्वेटीका फोन्ट स्विजरलेँड मेँ तैयार किया गया था , 1957 मेँ मेक्स् मेडीनीगर और एडवर्ड हॉकमेन के आईडिया से हेल्वेटीका बना था । जबकि लाइनवाला टाइप मशीन आया तब समाचार संस्था किस तरह फोन्ट का इस्तेमाल करेगेँ ये आईडिया माईक पार्कर नेँ दिया था । 1960 मेँ लाइन टाइप के लिये हेल्वेटीका तैयार किया गया था । गुटनवर्ग कि क्रांति के वाद प्रिन्टीँग टेकनोलोजी मेँ और सुधार आया । जब दो दशक पहले डेस्कटॉप पव्लीशीँग शुरु हुआ तब कोम्प्युटर सेकडो फोन्ट के साथ बेचा जाता था । उनदिनोँ वहु उपयोगी फोन्ट बनाने के लिये माइक पार्कर नेँ कोओर्डीनेशन किया था , फोन्ट द्वारा कलर कोम्प्युनिकेशन को भी संभव बनाया था । एसियाइ देशो मेँ फोन्ट डेवलप करने मेँ चीन सबसे आगे था । भारत मेँ भी तामिलनाड़ु दुसरे राज्योँ से वहतर था ।